मंथन के विषय में
परिचय:
‘मंथन’ उत्तराखण्ड के जागरूक लोगों का एक ऐसा संगठन है जो देश व उत्तराखण्ड राज्य की विभिन्न धार्मिक-सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ समसामयिक ज्वलंत मुद्दों को जानकर उनके निराकरण के लिए संभावित समाधान का प्रयास करना चाहता है। इस संगठन के सभी सदस्य न सिर्फ अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं बल्कि इसके साथ-साथ समाज के प्रति अपने कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों को लेकर जागरूक व समर्पित भी हैं। इसके अतिरिक्त ‘मंथन’ में हम उन सभी लोगों का स्वागत करते हैं जो बिना किसी भेदभाव के मानवता के प्रति समर्पित हों।
उत्तराखण्ड की स्थापना व जन अपेक्षाएं:
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वर्ष 2001 में विभिन्न कारणों से उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना हुई थी और यहाँ के सभी निवासियों को यह अपेक्षाएं थीं कि इससे प्रदेश का त्वरित विकास होगा तथा अलग राज्य बनने से यहाँ की विभिन्न समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान होगा तथा परिस्थितियाँ सुधरेंगी। किन्तु वास्तविकता यह है कि राज्य की स्थापना के लगभग 25 वर्षों के दीर्घ-अंतराल के पश्चात भी समस्यायें जस की तस हैं बल्कि समय के साथ-साथ बढ़ी ही हैं और जितनी भी सरकारें आयीं उनके पास राज्य की समस्याओं के निदान के लिए न तो कोई रोड मैप है न ही इच्छाशक्ति।
उद्देश्य:
इन परिस्थितियों में संगठन का मुख्य उद्देश्य उत्तराखण्ड राज्य की विभिन्न धार्मिक-सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर उनके संभावित समाधान ढूँढने का प्रयास करना है। इसके साथ-साथ इस संगठन का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा ऐसे लोगों से स्वयं को जोड़ना है जो बिना किसी धार्मिक-सामाजिक व अन्य पूर्वाग्रहों के सभी लोगों के कल्याण के लिए स्वयं आगे आयें, एक-एक कर विभिन्न समस्याओं पर चर्चा करें और हमारा मार्गदर्शन करें।
महत्वपूर्ण मुद्दे:
- मुख्य रूप से उत्तराखण्ड के युवाओं की बेरोजगारी की समस्या के कारण व निदान
- उत्तराखण्ड राज्य में मानव-तस्करी (विशेषकर स्त्रियों व बच्चियों) के कारण व समाधान
- राज्य में महिलाओं पर आवश्यकता से अधिक उत्तरदायित्व (बोझ) व उसका संभावित समाधान
- राज्य में नशे के बढ़ते प्रचलन को रोकने के संभावित उपाय
- राज्य के प्राकृतिक संसाधनों (मुख्यतः जल व जंगल) का संरक्षण एवं संवर्धन
- राज्य में सामाजिक रूप से पिछड़ों व शोषितों की स्थिति
- राज्य में बढ़ते आपराधिक मामलों के कारण को जानना व इनका निराकरण
- उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना व उत्तराखण्ड की स्थानीय बोलियों ‘गढ़वाली’ व ‘कुमाउनी’ के कम प्रचलन के कारणों को जानना व इनके प्रचार-प्रसार पर ध्यान देना
हम सभी इस तथ्य से भी भली-भाँति परीचित हैं कि इन समस्याओं का समाधान रातों-रात नहीं निकल सकता। किन्तु फिर भी यह भी सत्य है कि इस प्रकार की समस्याओं से यदि निजात पानी हो तो सरकार के साथ-साथ समाज के जागरूक लोगों, बुद्धिजीवियों को आगे आकर समाज का मार्गदर्शन करना होगा। इतिहास साक्षी है कि सम्पूर्ण विश्व में बुद्धिजीवियों ने ही आगे आकर समाज का मार्गदर्शन किया है तथा विभिन धार्मिक-सामाजिक समस्याओं पर विजय पायी है। इसलिए उत्तराखण्ड की भी विभिन्न समस्याओं का निराकरण सम्भव है अगर इसके लिए किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है दृढ़ इच्छाशक्ति और मजबूत इरादों की। अतः उत्तराखण्ड के सभी जागरूक लोगों से हमारा विनम्र निवेदन है कि स्वयं आगे आयें और हमारा मार्गदर्शन करें।
पूर्व में संगठन के सदस्य उत्तराखण्ड में लोक सेवा आयोग की विभिन्न परीक्षाओं व सहायक प्रोफेसर की नियुक्तियों को लेकर हम माननीय मुख्यमंत्री श्री धामी जी से मिले व उनको इस विषय पर विस्तृत ज्ञापन दिया। इसके साथ-साथ उच्च-शिक्षा में व्याप्त विभिन्न खामियों को लेकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को भी पत्र लिखे।